Tuesday, March 31, 2009

पर्व त्यौहार

अप्रैल सन् 2009

1 अप्रैल: वासन्तीय सूर्यषष्ठी व्रत (चैती छठ), यमुना जयंती, बिल्वाभिमंत्रण षष्ठी, नवपद ओली प्रारम्भ (जैन), श्रीचिन्तामणि गणेश-दर्शन (उज्जैन)

2 अप्रैल: वासन्ती दुर्गा-पूजा प्रारम्भ, महासप्तमी व्रत, कालरात्रि सप्तमी, कमला सप्तमी, भास्कर सप्तमी, पत्रिका-प्रवेश, अर्धरात्रि में महानिशा-पूजा

3 अप्रैल: श्रीदुर्गा-महाष्टमी व्रत, श्रीअन्नपूर्णाष्टमी व्रत, अशोकाष्टमी, मध्याह्न-व्यापिनी नवमी में श्रीरामनवमी व्रतोत्सव, तारा महाविद्या जयंती, स्वामी नारायण जयंती (अक्षरधाम), अयोध्या-परिक्रमा, मेला बाहू फोर्ट और भगवती उमा जयंती (जम्मू-कश्मीर), साईबाबा उत्सव प्रारम्भ (शिरडी), पुष्पांजलि व्रत पूर्ण (दिगं. जैन), आचार्य भिक्षु अभिनिष्क्रमण (जैन)

4 अप्रैल: नवरात्र व्रत का पारण, धर्मराज दशमी, चैत्री विजयादशमी (मिथिलांचल), दशहरा (मालवा), साईबाबा उत्सव पूर्ण (शिरडी)

5 अप्रैल: कामदा एकादशी व्रत, श्रीलक्ष्मी-नारायण दोलोत्सव, लीलाशाह जयंती (सिन्धी), फूलडोल ग्यारस, श्रीबाँकेबिहारी का फूल-बंगला बनना शुरू (वृंदावन), Palm Sunday (Christian)

6 अप्रैल: एकादशी व्रत (निम्बार्क), मदन द्वादशी, श्रीहरि-दमनकोत्सव, विष्णु द्वादशी, श्यामबाबा द्वादशी- ज्योति, तिथिवासर प्रात: 6.56 बजे तक, व्यतिपात महापात दोपहर 2.36 से सायं 6.34 तक

7 अप्रैल: भौम प्रदोष व्रत (ऋण-मोचन हेतु), अनंग त्रयोदशी, महावीर जयन्ती (जैन), रत्नत्रय व्रत 3 दिन (दिगं. जैन)

8 अप्रैल: दमनक चतुर्दशी, श्रीचिन्तामणि गणेश दर्शन-यात्रा (उज्जैन), मदन-भंजिका चतुर्दशी व्रत (मिथिलांचल), पाक्षिक प्रतिक्रमण (श्वेत.जैन), ग्यारहवीं शरीफ (मुस.), दशलक्षणव्रत पूर्ण (दिग. जैन)

9 अप्रैल: स्नान-दान-व्रत की चैत्री पूर्णिमा, सत्यनारायण व्रत-कथा, श्रीहनुमान जयंती महोत्सव (संकटमोचन मंदिर- काशी, सालासर, मेंहदीपुर), सर्वदेवदमनकोत्सव, श्रील श्यामानंद प्रभु का आविर्भावोत्सव, छत्रपति शिवाजी की पुण्यतिथि, श्रीद्वारकाधीश छप्पन भोग (मथुरा), सिद्धाचल यात्रा (जैन), वैशाख स्नान-नियम प्रारंभ, अग्रोहा मेला,Pesach (Jewish)

10 अप्रैल: कच्छपावतार जयंती, षोडशकारण व्रत समाप्त (दिग. जैन), Good Friday (Christian)

11 अप्रैल: आशा द्वितीय (आसो दूज), Easter Saturday (Christian)

12 अप्रैल: संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत (पश्चिम भारत) में, Sunday (Christian)

13 अप्रैल: संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत (पूर्वी भारत में), सूर्य की मेष-संक्रान्ति रात्रि 12.47 बजे, वैशाखी, मीन (खर) मास समाप्त

14 अप्रैल: मेष (सतुआइन) संक्रान्ति का विशेष पर्वकाल प्रात: 7.11 बजे तक, सामान्य पुण्यकाल मध्याह्न तक, हरिद्वार में कल्पवास प्रारम्भ, मंगलनाथ दर्शन-यात्रा (उज्जैन), श्रीपंचमी (जम्मू-कश्मीर), चडक पूजा (बंगाल), अम्बेडकर जयंती, आर्यभट्ट जयंती, सौर नववर्ष प्रारंभ

15 अप्रैल: जूडिशीतल (मिथिलांचल), कोकिला षष्ठी, वेतालषष्ठी (जम्मू-कश्मीर), बंगाली नववर्ष 1416 प्रारम्भ 16 अप्रैल: शर्करा सप्तमी

17 अप्रैल: शीतलाष्टमी (बसौडा), कालाष्टमी

19 अप्रैल: चण्डिका नवमी व्रत, सूर्य सायन वृष राशि में शेष रात्रि 4.15 बजे, सौर ग्रीष्म ऋतु प्रारम्भ, वैधृति महापात रात्रि 12.06 से 4.42 तक,Low Sunday (Christian)

20 अप्रैल: पंचक्रोशी- पंचेशानि यात्रा प्रारम्भ (उज्जैन)

21 अप्रैल: वरूथिनी एकादशी व्रत, श्रीवल्लभाचार्य जयंती महोत्सव, श्रीवल्लभाब्द 532 प्रारंभ, मंगलनाथ दर्शन-यात्रा (उज्जैन)

22 अप्रैल: प्रदोष व्रत, वसुन्धरा दिवस

23 अप्रैल: मासिक शिवरात्रि व्रत, बाबू कुँवर सिंह जयंती (बिहार), अक्कलकोट के श्रीस्वामी महाराज की पुण्यतिथि

24 अप्रैल: पितृ-श्राद्ध की अमावस, पाक्षिक प्रतिक्रमण (श्वेत. जैन)

25 अप्रैल: स्नान-दान की वैशाखी अमावस्या, शनैश्चरी अमावस, शुकदेव मुनि जयंती, पंचक्रोशी-पंचेशानि यात्रा पूर्ण, अष्टाविंशति तीर्थयात्रा (उज्जैन)

26 अप्रैल: नवीन चन्द्र-दर्शन, महर्षि पाराशर जयंती

27 अप्रैल: अक्षय तृतीया, परशुराम जयंती, चंदनयात्रा, श्रीबाँकेबिहारी के वार्षिक चरण-दर्शन (वृंदावन), मातंगी महाविद्या जयंती, त्रेतायुगादि तिथि, वर्षी तप-पारणा (जैन), त्रिलोचन -दर्शन (काशी)

28 अप्रैल: वरदविनायक चतुर्थी व्रत, अंगारकी चतुर्थी, श्रीमंगलनाथ दर्शन-यात्रा (उज्जैन), रोहिणी व्रत (दिग. जैन)

29 अप्रैल: आद्यशंकराचार्य की 2516वीं जयंती, श्रीरामानुजाचार्ज जयंती (द.भा.), सूरदास जयन्ती 531वीं 30 अप्रैल: चंदनषष्ठी (बंगाल)

Friday, March 13, 2009

दिव्यशक्ति से महातीर्थ बनी शिरडी

शिरडी के साईबाबा आज असंख्य लोगों के आराध्यदेव बन चुके है। उनकी कीर्ति दिन दोगुनी-रात चौगुनी बढ़ती जा रही है। यद्यपि बाबा के द्वारा नश्वर शरीर को त्यागे हुए अनेक वर्ष बीत चुके है, परंतु वे अपने भक्तों का मार्गदर्शन करने के लिए आज भी सूक्ष्म रूप से विद्यमान है। शिरडी में बाबा की समाधि से भक्तों को अपनी शंका और समस्या का समाधान मिलता है। बाबा की दिव्य शक्ति के प्रताप से शिरडी अब महातीर्थ बन गई है।

कहा जाता है कि सन् 1854 ई.में पहली बार बाबा जब शिरडी में देखे गए, तब वे लगभग सोलह वर्ष के थे। शिरडी के नाना चोपदार की वृद्ध माता ने उनका वर्णन इस प्रकार किया है- एक तरुण, स्वस्थ, फुर्तीला तथा अति सुंदर बालक सर्वप्रथम नीम के वृक्ष के नीचे समाधि में लीन दिखाई पड़ा। उसे सर्दी-गर्मी की जरा भी चिंता नहीं थी। इतनी कम उम्र में उस बालयोगी को अति कठिन तपस्या करते देखकर लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। दिन में वह साधक किसी से भेंट नहीं करता था और रात में निर्भय होकर एकांत में घूमता था। गांव के लोग जिज्ञासावश उससे पूछते थे कि वह कौन है और उसका कहां से आगमन हुआ है? उस नवयुवक के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर लोग उसकी तरफ सहज ही आकर्षित हो जाते थे। वह सदा नीम के पेड़ के नीचे बैठा रहता था और किसी के भी घर नहीं जाता था। यद्यपि वह देखने में नवयुवक लगता था तथापि उसका आचरण महात्माओं के सदृश था। वह त्याग और वैराग्य का साक्षात् मूर्तिमान स्वरूप था।

कुछ समय शिरडी में रहकर वह तरुण योगी किसी से कुछ कहे बिना वहां से चला गया। कई वर्ष बाद चांद पाटिल की बारात के साथ वह योगी पुन: शिरडी पहुंचा। खंडोबा के मंदिर के पुजारी म्हालसापति ने उस फकीर का जब 'आओ साई' कहकर स्वागत किया, तब से उनका नाम 'साईबाबा' पड़ गया। शादी हो जाने के बाद वे चांद पाटिल की बारात के साथ वापस नहीं लौटे और सदा-सदा के लिए शिरडी में बस गये। वे कौन थे? उनका जन्म कहां हुआ था? उनके माता-पिता का नाम क्या था? ये सब प्रश्न अनुत्तरित ही है। बाबा ने अपना परिचय कभी दिया नहीं। अपने चमत्कारों से उनकी प्रसिद्धि चारों ओर फैल गई और वे कहलाने लगे 'शिरडी के साईबाबा'।

साईबाबा ने अनगिनत लोगों के कष्टों का निवारण किया। जो भी उनके पास आया, वह कभी निराश होकर नहीं लौटा। वे सबके प्रति समभाव रखते थे। उनके यहां अमीर-गरीब, ऊंच-नीच, जाति-पाति, धर्म-मजहब का कोई भेदभाव नहीं था। समाज के सभी वर्ग के लोग उनके पास आते थे। बाबा ने एक हिंदू द्वारा बनवाई गई पुरानी मसजिद को अपना ठिकाना बनाया और उसको नाम दिया 'द्वारकामाई'। बाबा नित्य भिक्षा लेने जाते थे और बड़ी सादगी के साथ रहते थे। भक्तों को उनमें सब देवताओं के दर्शन होते थे। कुछ दुष्ट लोग बाबा की ख्याति के कारण उनसे ईष्र्या-द्वेष रखते थे और उन्होंने कई षड्यंत्र भी रचे। बाबा सत्य, प्रेम, दया, करुणा की प्रतिमूर्ति थे। साईबाबा के बारे में अधिकांश जानकारी श्रीगोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर द्वारा लिखित 'श्री साई सच्चरित्र' से मिलती है। मराठी में लिखित इस मूल ग्रंथ का कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। साईनाथ के भक्त इस ग्रंथ का पाठ अनुष्ठान के रूप में करके मनोवांछित फल प्राप्त करते है।

साईबाबा के निर्वाण के कुछ समय पूर्व एक विशेष शकुन हुआ, जो उनके महासमाधि लेने की पूर्व सूचना थी। साईबाबा के पास एक ईट थी, जिसे वे हमेशा अपने साथ रखते थे। बाबा उस पर हाथ टिकाकर बैठते थे और रात में सोते समय उस ईट को तकिये की तरह अपने सिर के नीचे रखते थे। सन् 1918 ई.के सितंबर माह में दशहरे से कुछ दिन पूर्व मसजिद की सफाई करते समय एक भक्त के हाथ से गिरकर वह ईट टूट गई। द्वारकामाई में उपस्थित भक्तगण स्तब्ध रह गए। साईबाबा ने भिक्षा से लौटकर जब उस टूटी हुई ईट को देखा तो वे मुस्कुराकर बोले- 'यह ईट मेरी जीवनसंगिनी थी। अब यह टूट गई है तो समझ लो कि मेरा समय भी पूरा हो गया।' बाबा तब से अपनी महासमाधि की तैयारी करने लगे।

नागपुर के प्रसिद्ध धनी बाबू साहिब बूटी साईबाबा के बड़े भक्त थे। उनके मन में बाबा के आराम से निवास करने हेतु शिरडी में एक अच्छा भवन बनाने की इच्छा उत्पन्न हुई। बाबा ने बूटी साहिब को स्वप्न में एक मंदिर सहित वाड़ा बनाने का आदेश दिया तो उन्होंने तत्काल उसे बनवाना शुरू कर दिया। मंदिर में द्वारकाधीश श्रीकृष्ण की प्रतिमा स्थापित करने की योजना थी।

15 अक्टूबर सन् 1918 ई. को विजयादशमी महापर्व के दिन जब बाबा ने सीमोल्लंघन करने की घोषणा की तब भी लोग समझ नहीं पाए कि वे अपने महाप्रयाण का संकेत कर रहे है। महासमाधि के पूर्व साईबाबा ने अपनी अनन्य भक्त श्रीमती लक्ष्मीबाई शिंदे को आशीर्वाद के साथ 9 सिक्के देने के पश्चात कहा- 'मुझे मसजिद में अब अच्छा नहीं लगता है, इसलिए तुम लोग मुझे बूटी के पत्थर वाड़े में ले चलो, जहां मैं आगे सुखपूर्वक रहूंगा।' बाबा ने महानिर्वाण से पूर्व अपने अनन्य भक्त शामा से भी कहा था- 'मैं द्वारकामाई और चावड़ी में रहते-रहते उकता गया हूं। मैं बूटी के वाड़े में जाऊंगा जहां ऊंचे लोग मेरी देखभाल करेगे।' विक्रम संवत् 1975 की विजयादशमी के दिन अपराह्न 2.30 बजे साईबाबा ने महासमाधि ले ली और तब बूटी साहिब द्वारा बनवाया गया वाड़ा (भवन) बन गया उनका समाधि-स्थल। मुरलीधर श्रीकृष्ण के विग्रह की जगह कालांतर में साईबाबा की मूर्ति स्थापित हुई।

महासमाधि लेने से पूर्व साईबाबा ने अपने भक्तों को यह आश्वासन दिया था कि पंचतत्वों से निर्मित उनका शरीर जब इस धरती पर नहीं रहेगा, तब उनकी समाधि भक्तों को संरक्षण प्रदान करेगी। आज तक सभी भक्तजन बाबा के इस कथन की सत्यता का निरंतर अनुभव करते चले आ रहे है। साईबाबा ने प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से अपने भक्तों को सदा अपनी उपस्थिति का बोध कराया है। उनकी समाधि अत्यन्त जागृत शक्ति-स्थल है।

साईबाबा सदा यह कहते थे- 'सबका मालिक एक'। उन्होंने साम्प्रदायिक सद्भावना का संदेश देकर सबको प्रेम के साथ मिल-जुल कर रहने को कहा। बाबा ने अपने भक्तों को श्रद्धा और सबूरी (संयम) का पाठ सिखाया। जो भी उनकी शरण में गया उसको उन्होंने अवश्य अपनाया। विजयादशमी उनकी पुण्यतिथि बनकर हमें अपनी बुराइयों (दुर्गुणों) पर विजय पाने के लिए प्रेरित करती है। नित्यलीलालीन साईबाबा आज भी सद्गुरु के रूप में भक्तों को सही राह दिखाते है और उनके कष्टों को दूर करते है। साईनाथ के उपदेशों में संसार के सी धर्मो का सार है। अध्यात्म की ऐसी महान विभूति के बारे में जितना भी लिखा जाए, कम ही होगा। उनकी यश-पताका आज चारों तरफ फहरा रही है। बाबा का 'साई' नाम मुक्ति का महामंत्र बन गया है और शिरडी महातीर्थ।

आसमां होगा मुट्ठी में

Your Ad Here तमाम ऐसी महिलाएं है, जो सामान्य चेहरे-मोहरे के बावजूद अपनी योग्यताओं और आत्मविश्वास के बलबूते ही अपने कॅरियर में कामयाब है। याद करिए ग्लैमर और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री से जुड़े ऐसे कई कलाकार हुए है, जिनका चेहरा-मोहरा सामान्य था, पर ऐसे कलाकार अपने आत्मविश्वास से आगे बढ़े ही नहीं, बल्कि अपने प्रोफेशन में सफल भी रहे है। इसी तरह अन्य क्षेत्रों में भी बहुत सी ऐसी महिलाएं है, जो चेहरे-मोहरे से खास सुंदर न होने के बावजूद अपने कॅरियर में सफल है। यह दीगर बात है कि अपनी किसी एक खामी को ढँकने के लिए ऐसे लोगों को अपनी अन्य योग्ताओं को उभारने के लिए दोगुनी मेहनत करनी पड़ी हो।

[मनोवैज्ञानिकों की राय]

नई दिल्ली के एक मनोचिकित्सक डॉ. गौरव गुप्ता के अनुसार आत्मविश्वास कोई ऐसा गुण नहीं है, जो जन्म से आपके साथ आता हो। हम जिस परिवेश में रहते है, उस परिवेश की चुनौतियों के साथ कितनी अच्छी तरह तालमेल स्थापित करते है, ये सारी बातें आपके आत्मविश्वास को बढ़ाती है। इस संदर्भ में एक अन्य वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. रामास्वामी हरिहरन के अनुसार चुनौतियों को स्वीकार करने से आत्मविश्वास बढ़ता है। मान लें कि कोई बच्चा गणित के किसी सवाल को हल नहीं कर पा रहा है, तो आप उसे एक बार समझाएं। फिर उसी सूत्र पर आधारित दूसरे सवाल को उसे अपने आप हल करने दें। उस सवाल को हल करने के बाद बच्चे का आत्मविश्वास गणितीय सवालों के मामले में बढ़ जाएगा। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बचपन की पारिवारिक स्थितियों का भी कालांतर में किसी व्यक्ति के आत्मविश्वास पर अच्छा व बुरा प्रभाव पड़ता है। बकौल डॉ. हरिहरन यदि किसी बच्चे की परवरिश सही ढंग से नहीं हुई या अभिभावकों ने बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्रोत्साहित नहीं किया, तो इस स्थिति में वयस्क होने पर वह आत्मविश्वासी नहीं बन पाता। जो माता-पिता बच्चों को अच्छी आदतें अपनाने के लिए प्रेरित-प्रोत्साहित करते है, उनकी मदद करते है, उनके अच्छे कार्यो की सराहना करते है, उनके ही बच्चे वयस्क होने पर आत्मविश्वासी बन पाते है। कुछ बातें जिन पर अमल कर आप आत्मविश्वासी बनकर अपने जीवन में कामयाबी के झंडे बुलंद कर सकती है।

[खुद से करे प्रेम]

आत्मविश्वासी बनने की राह में पहला कदम है स्वयं से प्रेम करना अर्थात सुबह उठकर सबसे पहले आईने में अपना चेहरा देखें। चेहरा देखकर यह सोचें कि मुझमें कई खूबियां है, मेरा कोई जवाब नहीं। आप जब उदारमना होकर दूसरों की जमकर तारीफ कर सकती है, तो एकांत में अपनी क्यों नहीं? अपने बारे में भी सकारात्मक सोच रखें। कई अध्ययनों और शोधों से मनोवैज्ञानिक और वैज्ञानिक स्तर पर यह बात साबित हो चुकी है कि हमारे विचारों का हमारे व्यक्तित्व के निर्माण में व्यापक असर पड़ता है। यदि हमारी सोच नकारात्मक व निराशावादी है, तो इसका प्रतिकूल असर हमारे दिमाग पर पड़ेगा। एक बात याद रखें कि यदि आप अपने नकारात्मक पहलुओं पर अधिक ध्यान देंगी, तो फिर आप दूसरों के बारे में भी नकारात्मक बातों पर ही ध्यान देंगी। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि आप अपनी खामियों को दूर करने का प्रयास करे, पर इस संदर्भ में अपनी आलोचना करना ठीक नहीं है।

[अतीत से छुटकारा]

यदि किसी शख्स के साथ अतीत में उत्पीड़न की कोई घटना घटित हुई है, तो इसकी तल्ख याद भुलाए नहीं भूलती। इस तरह की यादें, जब-तब आपके दिमाग को परेशान कर देती है। पहली बात तो यही कि इस तरह की तल्ख यादों को जेहन में न आने दें। यदि वे आती है, तो उनके याद आने पर खुद से यह सवाल करे कि बीती हुई बातों का अब समाधान क्या हो सकता है? याद रखिए बीते हुए दिनों को वापस नहीं लाया जा सकता। जिस प्रकार से घड़ी की सुइयों को उल्टी दिशा में घुमाने से कोई फायदा नहीं होता, ठीक उसी प्रकार से बीते वक्त के बारे में अपना वक्त बर्बाद करने से कुछ हासिल नहीं होगा, बल्कि आप अपने वर्तमान को ही खराब करेगी।

[परिधानों का महत्व]

आत्मविश्वासी होना हमारे व्यक्तित्व का एक मानसिक पहलूहै। फिर भी विभिन्न अवसरों के अनुरूप हमें अपने परिधानों के प्रति सजग होना चाहिए। पिछले दिनों फ्रांस में हुए एक अध्ययन से यह बात साबित हो चुकी है कि परिधान हमारे व्यक्तित्व पर गहरा असर डालते है। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार माहौल के अनुरूप लिबास धारण करने से हमारे आत्मविश्वास में इजाफा होता है। उदाहरण के लिए आप बाजार जा रही है, तो बाजार जाते समय यह सोचकर घरेलू परिधान न पहनें कि बाजार तो हमारे घर के पास ही है। संभव है कि बाजार में आपकी मुलाकात किसी खास शख्स से हो जाए। उस दौरान आप केवल अपना मन मसोस कर रह जाएंगी और बार-बार मन में यही सोचेंगी कि काश मैंने अच्छे परिधान पहने होते। विशेषज्ञों का कहना है कि जब आप अच्छी तरह तैयार होती है और माहौल के अनुकूल लिबास धारण करती है, तब आपकी 'बॉडी लैंग्वेज' में एक सकरात्मक परिवर्तन आ जाता है। दूसरे शब्दों में कहे, तो आपमें अधिक आत्मविश्वास आ जाता है। आपको समारोह या घटना के मद्देनजर ही अपना मेकअॅप करना चाहिए और उसी के अनुरूप परिधान धारण करने चाहिए, न कि अपनी सहूलियत समझकर। जैसे, हो सकता है कि आप ढीली-ढाली टीशर्ट पहनकर राहत महसूस करती हों, लेकिन यदि आप किसी खास पार्टी में जा रही है, तो वहां आपको उस पार्टी के अनुरूप परिधान धारण करने चाहिए। ऐसा करने पर ही आप हरेक को अच्छी तरह प्रभावित कर सकेंगी।

[शालीनता से स्वीकार करे]

तमाम महिलाएं लोगों द्वारा की सराहना और बधाई को स्वीकार करने में संकोच करती है या संशयग्रस्त हो जाती हैं। मान लें यदि आफिस में कोई आपकी या किसी अन्य महिला की तारीफ करता है कि आज आप बहुत सुंदर लग रही है, तो संभव है कि आपके या उस महिला के मन में यह ख्याल आए कि क्या मैं अन्य दिनों में अच्छी नहीं लगती हूं? हो सकता है कि आप यह सोचने लगें कि तारीफ करने वाले की मंशा क्या है, जो वह आज मेरी तारीफ कर रहा है? मनोवैज्ञानिकों के अनुसार जब कभी कोई आपकी सराहना करे, तो संशयग्रस्त न होकर उसकी बात को स्वीकार करे और उसी के अनुसार उत्तार दें। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि जो यह कहता है कि मुझे अपनी तारीफ पसंद नहीं, याद रखिए वह व्यक्ति अपनी तारीफ बार-बार सुनना चाहता है। इसलिए किसी की बधाई या सराहना को एक विजेता की तरह स्वीकार करे।

[शांत रहना आवश्यक है]

इन शब्दों को कहना जितना आसान है, उन पर अमल करना उतना ही मुश्किल है। यदि आप अपने परिवेश को लेकर आक्रोशित, चिंितंत, क्रोधित और घबड़ाई हुई है, तो इन सबसे निजात पाने के लिए आपको अपने तन-मन को शांत करने वाली विधियों पर भी अमल करना होगा। विशेषज्ञों के अनुसार योगा और मेडिटेशन हमारे तन-मन को विश्राम देकर ऊर्जा और तरोताजगी से एक बार फिर पूर्ण कर देते है। सच तो यह है कि शांति या इत्मीनान से काम करने से आप किसी भी कार्य को उत्कृष्ट ढंग से कर सकती है। शांत मिजाज लोग दूसरों पर अपना प्रभाव सशक्त ढंग से छोड़ने में सफल रहते है।

[जिम्मेदारियां लें]

आप जो भी कार्य करे, उसकी जिम्मेदारी स्वयं लें। याद रखें जो लोग आगे बढ़कर जिम्मेदारियां नहीं लेते, वे कभी आत्मविश्वासी नहीं बन सकते। समाज में स्वतंत्र और आत्मनिर्भर व्यक्ति की छवि बनाएं। याद रखें जिंदगी फूलों की सेज नहीं है। यहां सुख भी हैं, तो दुख भी है। आत्मविश्वासी व्यक्ति कभी भी दया का पात्र नहीं बनते है। अगर उनमें कोई खामियां हैं, तो वे उन्हे सुधारने का प्रयास करते है। अपनी खामियों को छिपाने के लिए वे बहाने नहीं बनाते और न ही दूसरों पर दोष मढ़ते है। अगर आपसे कोई गलती हो गई है, तो उसे स्वीकार करे। साथ ही कोशिश करे कि आगे से ऐसा न होने पाए। यदि आपके मन में कोई भय या फोबिया है, तो उसे दूर करने का प्रयास करे। साथ ही प्रतिदिन जिंदगी में कुछ न कुछ नया सीखने का प्रयास करे।

[स्वास्थ्य पर ध्यान]

व्यायाम करने से न केवल आपका शरीर स्वस्थ रहता है, बल्कि मानसिक रूप से भी आप चुस्त-दुरुस्त रहती है। विशेषज्ञों का कहना है कि व्यायाम हमें सुखद अहसास कराता है। ऐसा इसलिए क्योंकि व्यायाम करने पर हमारे शरीर में सुखद अहसास कराने वाले हार्मोन तेजी से प्रवाहित होने लगते है। इन हार्मोनों के तेजी से प्रवाहित होने के कारण हमारा मन नयी ऊर्जा से परिपूर्ण हो जाता है। व्यायाम हमें आत्म विश्वास से पूर्ण करने में अहम् भूमिका निभाते

Wednesday, March 11, 2009

होली मुबारक हो सबको

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मार्च सन् 2009

1 मार्च: याज्ञवल्क्य जयंती

2 मार्च: गोरूपिणी षष्ठी (बंगाल), स्कन्द (कुमार) षष्ठी व्रत

3 मार्च: कामदासप्तमी व्रत, कल्याणसप्तमी, अट्ठाई प्रारंभ (श्वेत. जैन)

4 मार्च: श्रीदुर्गाष्टमी, श्रीअन्नपूर्णाष्टमी व्रत, तैलाष्टमी (जम्मू-कश्मीर), होलाष्टक प्रारम्भ (शुभ कार्यो में वर्जित), बुधाष्टमी व्रत (सूर्यग्रहणतुल्य पर्वकाल), रोहिणी व्रत एवं अट्ठाई प्रारंभ (दिग. जैन)

5 मार्च: आनन्दनवमी, ब्रज में होली शुरू, लट्ठमार होली (बरसाना-मथुरा)

6 मार्च: फागुदशमी (उडीसा), लट्ठमार होली (नन्दगाँव-मथुरा), त्रिदिवसीय मेला खाटूश्यामजी प्रारम्भ (राजस्थान)

7 मार्च: आमलकी (आँवला) एकादशी व्रत, रंगभरी एकादशी, श्रीकाशीविश्वनाथ का श्रृंगारोत्सव (वाराणसी), लट्ठमार होली (श्रीकृष्णजन्मभूमि-मथुरा), अन्तगर्ृहीय परिक्रमा प्रारम्भ (जनकपुर-मिथिला), बिडकुला-ढाल थापणा (भद्रा के बाद)

8 मार्च: गोविन्दद्वादशी, श्रीश्यामबाबा द्वादशी-ज्योति, श्रीजगन्नाथ दर्शन-यात्रा (पुरी), पापनाशिनी द्वादशी, सुगतिद्वादशी, सुकृतद्वादशी, जयाद्वादशी, प्रदोष व्रत, महिला दिवस, खाटूश्याम-मेला पूर्ण (राज.)

9 मार्च: नन्दत्रयोदशी व्रत, होलिकोत्सव (रमणरेती-वृंदावन)

10 मार्च: पूर्णिमा व्रत, श्रीसत्यनारायण कथा-पूजा, महेश्वर व्रत, सर्वार्तिहर व्रत, बारहवफात (मुस.), हुताशनी पूर्णिमा-होलिका दहन रात्रि 9.08 बजे के बाद शुभ, पाक्षिक प्रतिक्रमण (श्वेत. जैन), Purim (Jewish)

11 मार्च: होली (रंगोत्सव), धुलैण्डी, स्नान-दान की फाल्गुनी पूर्णिमा, दोलयात्रा (बंगाल), चौसट्ठी देवी दर्शन-यात्रा (काशी), करिदिन, होला-श्रीआनन्दपुर साहिब (पंजाब), चैतन्य महाप्रभु 524वीं जयंती व्रतोत्सव, पातरिदान (मिथिलांचल), सप्तडोरक-बन्धन, अन्तगर्ृहीय परिक्रमा पूर्ण (जनकपुर), गणगौर पूजा प्रारंभ (राज.), व्यतिपात महापात रात्रि 9.21 से 1.17 तक

12 मार्च: भाईदूज-टीका, चित्रगुप्त पूजा, षोडशकारण मुष्ठिविधान व्रत प्रारम्भ (दिग. जैन), संत तुकाराम जयंती

13 मार्च: छत्रपति शिवाजी की जन्मतिथि, थाल भरुण (जम्मू-कश्मीर)

14 मार्च: संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत, सूर्य की मीन-संक्रान्ति सायं 4.16 बजे, संक्रान्ति-पुण्यकाल सायं 4.16 से सूर्यास्त तक, गोदावरी स्नान-दान, संकल्प में प्रयोजनीय वसन्त ऋतु प्रारम्भ, शुभकार्यो में निषिद्ध मीन (खर) मास प्रारम्भ, सोन्थ (जम्मू-कश्मीर), श्रीरंग मंदिर का ब्रह्मोत्सव प्रारम्भ (वृंदावन)

15 मार्च: रंगपंचमी, फाग महोत्सव, श्रीमहाकालेश्वर के ध्वज का नगर-भ्रमण (उज्जैन), नौचण्डी मेला प्रारम्भ (मेरठ), ईद-ए-मौलाद (मुस.)

16 मार्च: श्रीएकनाथ षष्ठी, सोम-शीतला पूजा

17 मार्च: वृद्ध अंगारक पर्व (बुढवा मंगल-काशी), होली मेला (कानपुर), उर्स निजामुद्दीन औलिया (दिल्ली), विकलांग दिवस

18 मार्च: शीतलासप्तमी, सिलाहों की सप्तमी, कालाष्टमी, श्रीरंग मंदिर का ब्रह्मोत्सव पूर्ण (वृंदावन), चिन्तामणि गणेश दर्शन-यात्रा (उज्जैन)

19 मार्च: शीतलाष्टमी (बसौडा), अष्टका श्राद्ध, आदिनाथ जन्म एवं दीक्षा कल्याणक तथा वर्षीतप प्रारम्भ (श्वेत. जैन), नौचण्डी मेला पूर्ण

20 मार्च: सूर्य सायन मेष राशि में सायं 5.14 बजे, वसन्त सम्पात्-सूर्य उत्तरगोल में, महाविषुव दिवस, अन्वष्टका नवमी, ऋषभदेव जयंती (दिग. जैन)

21 मार्च: राष्ट्रीय शक सम्वत् 1930 पूर्ण, दशामाता व्रत, ओशो सम्बोधि दिवस, Jamshedi Navroj (Parsi)

22 मार्च: पापमोचनी एकादशी व्रत, राष्ट्रीय शक सम्वत् 1931 प्रारंभ

23 मार्च: भगत सिंह-सुखदेव-राजगुरु शहीद दिवस

24 मार्च: मधुकृष्ण त्रयोदशी, भौम-प्रदोष व्रत, मासिक शिवरात्रि व्रत, रंगतेरस, वारुणी पर्व-गंगाजी में स्नान करोडों सूर्यग्रहणतुल्य, आदिकेशव-दर्शन (काशी), माँ हिंगलाज पूजा

25 मार्च: केदार चतुर्दशी (काशी), मेला पिहोवा (हरियाणा), चिन्तामणि गणेश दर्शन-यात्रा (उज्जैन), काम महोत्सव चतुर्दशी, चित्र चतुर्दशी (कश्मीर), पाक्षिक प्रतिक्रमण (श्वेत. जैन), गणेश शंकर विद्यार्थी बलिदान दिवस, वैधृति महापात प्रात: 9.58 से दोपहर 2.01 तक

26 मार्च: स्नान-दान-श्राद्ध की चैत्री अमावस्या, विक्रम सम्वत्सर 2065 पूर्ण, थाल भरुण एवं श्रीभट्ट दिवस तथा विचार नाग यात्रा (जम्मू-कश्मीर), लब्धिविधान व्रत 30 मार्च तक (दिग. जैन)

27 मार्च: 'शुभकृत्' नामक विक्रम सम्वत्सर 2066 प्रारम्भ, नवसंवत्सरोत्सव, नवपंचांग फल-श्रवण, ध्वजारोहण, वासंतिक नवरात्र प्रारम्भ, कलश (घट) स्थापना, आरोग्य व्रत, तिलक व्रत, विद्या व्रत, गुडी पडवा (महाराष्ट्र), डॉ. हेडगेवार जयंती, गौतम ऋषि जन्मतिथि, आर्य समाज स्थापना दिवस

28 मार्च: नवीन चन्द्र-दर्शन, चैतीचाँद-झूलेलाल जयंती (सिन्धी), अक्कलकोट के श्रीस्वामी महाराज की जयंती, श्रीरेमन्त-पूजन (मिथिलांचल)

29 मार्च: गणगौरी तीज व्रतोत्सव, गौरी तृतीया, सौभाग्य सुंदरी व्रत, मनोरथ तृतीया, अरुन्धती व्रत, जंगत्रय (जम्मू-कश्मीर), मत्स्यावतार जयंती, सरहुल

30 मार्च: वरदविनायक चतुर्थी व्रत, दशलक्षण-पुष्पांजलि व्रत प्रा. (दिग. जैन)

31 मार्च: श्रीपंचमी, हयव्रत, अनंतनाग पंचमी, रोहिणी व्रत, स्कन्द षष्ठी व्रत, श्रीराम-राज्य दिवस, पशुपतीश्वर पूजन (काशी), रोहिणी व्रत (दिग. जैन)

Thursday, March 5, 2009