Tuesday, December 30, 2008

माता-पिता के चरणों में ब्रह्मांड

एक प्रसंग सभी को मालूम होगा, जब भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों कार्तिकेय जी और गणेशजी के समक्ष ब्रह्मांड का चक्कर लगाने की प्रतियोगिता रखी कि दोनों में से कौन पहले ब्रह्मांड का चक्कर लगाता है। गणेश जी और कार्तिकेयजी दोनों एक साथ रवाना हुए। कार्तिकेयजी का वाहन था मोर जबकि गणेश जी का मूषक। कार्तिकेयजी क्षण भर में मोर पर बैठकर आँखों से ओझल हो गए जबकि गणेशजी अपनी सवारी पर धीरे-धीरे चलने लगे।

थोड़ी देर में गणेशजी फिर लौट आए और माता-पिता से क्षमा माँगी और उनकी 3 बार परिक्रमा कर कहा- लीजिए मैंने आपका काम कर दिया। दोनों गद्‍गद्‍ हो गए और पुत्र गणेश की बात से सहमत भी हुए। गणेश का कहना था ‍कि माता-पिता के चरणों में ही संपूर्ण ब्रह्मांड होता है।

गणेशजी के भक्तों को उनकी इसी सीख को आत्मसात करते हुए अपने माता-पिता की सेवा करनी चाहिए। हर हाल में माता-पिता को अपने साथ रख उनका ध्यान रखना चाहिए। हमें अपने आसपास देखने में आता है कि धीरे-धीरे हम पाश्चात्य संस्कृति के रंग में रंगते जा रहे हैं। माता-पिता वृद्ध हुए कि उन्हें उनका घर (वृ्द्धाश्रम) दिखा देते हैं।

गणेश चतुर्थी पर गणपति बप्पा मोरया के साथ-साथ अपने माता-पिता की सेवा का भी अवसर न चूकें। यही गणेशजी के प्रति आपकी सच्ची श्रद्धा होगी। दुर्वा गणेशजी को चढ़ाएँ और मोदक का भोग लगाएँ जो कि उनको बहुत‍ प्रिय हैं।

शादी के पहले तक माता-पिता ही सब दिखाई देते हैं। शादी के बाद वही स्थान पत्नी और फिर बच्चों का हो जाता है तो फिर वृद्ध माँ-बाप किसके भरोसे रहेंगे। आपके इस व्यवहार का लाभ आपको भी आगे जाकर मिलेगा। प्रेमचंद की ‘बूढ़ी काकी’ कहानी की भाँति जो बच्चे अपने सामने आपका व्यवहार दादा-दादी के साथ देखेंगे। वही वे आपके प्रति भी रखेंगे। आवश्यकता है समय रहते सचेत जाएँ।

जिन माता-पिता ने हमें अनेक कष्ट सहकर पाला-पोसा और बड़ा किया है, हमें उनका तिरस्कार कभी नहीं करना चाहिए। माता-पिता का साया किस्मत वालों के सिर पर ही होता है। एक बार जरा उन ‍अपने मित्रों या परिचि‍तों से मिलकर देखिए जिनके माता-पिता नहीं हैं। तो शायद इस बात का एहसास बखूबी हो जाएगा।

गणेश चतुर्थी पर गणपति बप्पा मोरया के साथ-साथ अपने माता-पिता की सेवा का भी अवसर न चूकें। यही गणेशजी के प्रति आपकी सच्ची श्रद्धा होगी। दुर्वा गणेशजी को चढ़ाएँ और मोदक का भोग लगाएँ जो कि उनको बहुत‍ प्रिय हैं। इसे अर्पित करने के बाद आपकी दिन दूनी और रात चौगुनी तरक्की के रास्ते में कोई बाधा नहीं आएगी और गणपति बप्पा भी कभी आपसे नहीं रूठेंगे।

गणेश चतुर्थी को चन्द्र दर्शन दोष से बचाव

Ganesh

प्रत्येक शुक्ल पक्ष चतुर्थी को चन्द्रदर्शन के पश्चात्‌ व्रती को आहार लेने का निर्देश है, इसके पूर्व नहीं। किंतु भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रात्रि में चन्द्र-दर्शन (चन्द्रमा देखने को) निषिद्ध किया गया है।

जो व्यक्ति इस रात्रि को चन्द्रमा को देखते हैं उन्हें झूठा-कलंक प्राप्त होता है। ऐसा शास्त्रों का निर्देश है। यह अनुभूत भी है। इस गणेश चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन करने वाले व्यक्तियों को उक्त परिणाम अनुभूत हुए, इसमें संशय नहीं है। यदि जाने-अनजाने में चन्द्रमा दिख भी जाए तो निम्न मंत्र का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए-

सिहः प्रसेनम्‌ अवधीत्‌, सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्वमन्तकः॥’

उक्त मंत्र बोलकर कल्याण की कामना से श्रद्धापूर्वक नमस्कार कर लें। यह शास्त्र का दोष शमनार्थ निर्देश है।

दूर्वार्पण विधि

सांसारिक कामनाएँ इस संसार में आए प्रत्येक व्यक्ति को होती हैं। कई कामनाओं का संबंध मूल आवश्यकता से होता है। इसी इच्छापूर्ति की प्राप्ति के लिए व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार प्रयास करता है। लेकिन भौतिक प्रयत्न से भी फल नहीं मिलने पर आशा ईश्वरीय चमत्कार कीओर जाती है। जिसकी प्राप्ति तभी संभव होती है जब आपेक्षक सविधि कोई अनुष्ठान करता है। इसमें गणेशजी की साधना शीघ्र फलदायी है। इनके अनेक प्रयोग में उनको प्रिय दूर्वा के चढ़ाने की पूजा शीघ्र फलदायी और सरलतम है। इसे किसी भी शुभ दिन प्रारंभ करना चाहिए। इसे गणेशजी की प्रतिष्ठित प्रतिमा पर करें। इक्कीस दूर्वा लेकर इन नाम मंत्र द्वारा गणेशजी को गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप व नैवेद्य अर्पण करके एक-एक नाम पर दो-दो दूर्वा चढ़ाना चाहिए। यह क्रम प्रतिदिन जारी रखने एवं नियमित समय पर करने से जो आप चाहते हैं उसकी प्रार्थनागणेशजी से करते रहने पर वह शीघ्र पूर्ण हो जाती है। इसमें इस प्रयोग के अतिरिक्त विघ्ननायक पर श्रद्धा व विश्वास रखना चाहिए।ॐ गणाधिपाय नमः ॐ उमापुत्राय नमः ॐ विघ्ननाशनाय नमः ॐ विनायकाय नमः ॐ ईशपुत्राय नमः ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः ॐ एकदन्ताय नमः ॐ इभवक्त्राय नमः ॐ मूषकवाहनाय नमः ॐ कुमारगुरवे नमः

गणेशजी की कृपा में ये सहायक हैं * लाल व सिंदूरी रंग प्रिय है।

* दूर्वा के प्रति विशेष लगाव है।

* चूहा इनका वाहन है।

* बैठे रहना इनकी आदत है।

* लिखने में इनकी विशेषज्ञता है।

* पूर्व दिशा अच्छी लगती है।

* लाल रंग के पुष्प से शीघ्र खुश होते हैं।

* प्रथम स्मरण से कार्य को निर्विघ्न संपन्ना करते हैैं।

* दक्षिण दिशा की ओर मुँह करना पसंद नहीं है।

* चतुर्थी तिथि इनकी प्रिय तिथि है।

* स्वस्तिक इनका चिन्ह है।

* सिंदूर व शुद्ध घी की मालिश इनको प्रसन्ना करती है।

* गृहस्थाश्रम के लिए ये आदर्श देवता हैं।

* कामना को शीघ्र पूर्ण कर देते हैं।

मेरे बारे मॅ

Your Ad Here प्रेरणास्रोत के रूप में नारी की भूमिका को सदैव ही स्वीकार किया जाता है। नारी निराशा में आशा का संचार करती है। वह कभी श्रद्धा बनकर जीवन से निराश मनु के मन में नवचेतना भरती है, कभी विद्योत्तमा बनकर मूर्ख कालिदास की प्रेरणा बनती है..